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एक दिन...जब तुम खो दोगे मुझे

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एक दिन यक़ीनन तुम मुझे खो दोगे
जैसे आज तुम्हें फिक्र नहीं
मेरे रूठने-मनाने से
मेरे रोकर बुलाने से
मेरे दूर हो जाने से
जब चली जाऊंगी हमेशा की खातिर
तुम ढूंढोगे मुझे ज़र्रा-ज़र्रा
चीखोगे मेरा नाम सन्नाटों में,
मुस्कराओगे सोचकर मेरा पागलपन
कि मैं होती तो क्या करती,
आज जब मैं हूँ हर उस जगह
जहाँ तुम चाहते हो
तो कैसे समझोगे मेरा न होना
और जब महसूसोगे
मैं नहीं बची रहूँगी
वापिस आने भर को भी
झलक में मिलूँगी न महक में
न ही बेबस पुकारों में,
मैं टुकड़ा-टुकड़ा जी रही हूँ आज
रत्ती-रत्ती मरने को,
एक कण सा भी चाहते हो मुझको
तो समा लो मेरा वजूद अपनी छाया में
मेरा दम घुट रहा है
बचा लो मुझे मर जाने से
मेरा दर्द बिखर जाने से
मैं गयी तो खो जाऊंगी
तुम शिकायत करोगे
तलाशोगे मेरी आवाज हर चेहरे में
और मैं सिमट जाऊंगी
चन्द अहसासों में सिमटे बस एक नाम में
एक थी ...
तब यकीनन खो चुके होगे मुझे।

1 टिप्पणी:

अनीता सैनी ने कहा…

बहुत सुन्दर सखी
सादर

मेरी पहली पुस्तक

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